जब मैं छोटा बच्चा था, क्या मैं ज़्यादा अच्छा था?
ये एक सवाल है तुम सब से, ये एक सवाल है हम सब से
जो दुनिया चम् - चम् करती है, क्या ये अच्छी है बचपन से?
जब कभी चाय का प्याला माँ लेकर सिरहाने होती थी
या कभी - कभी जब बाबूजी की सौ उलाहने होती थी
आँगन मैं आधा चंदा और आधा सूरज सा होता था
तुलसी हंसती थी महक-महक और नीम दातून पिरोता था
आँगन के कोने का जो नल, हर सुबह भूत बन जाता था
उस भूत के मुँह से सर्प निकल, हल-हल विषदंत चुभाता था
साबुन का झाग तो दुश्मन था, सपनो का महल बिखरता था
आंगनबाडी तो अच्छी थी, पर बसता बहुत अखरता था
जो पाठ पढ़ा था कल तुमने, उसको दोहराओ आज ज़रा
ये शब्द नही थे तरकश थे, सब लोग सहम से जाते थे
दो पल के लिए सभी बच्चे, हनुमान भक्त हो जाते थे
सर छुपा- छुपा के पुस्तक मे. हनुमान चालीसा गाते थे
छड़ लिए सामने मास्टरजी, कोई दानव से लगते थे
इस रूप मे रामलीला के, रावण का पाठ कर सकते थे
प्रान्गण के पास के मन्दिर मे, जो माथा टेक के आते थे
भगवन का रूप वही बच्चे, बन मुर्गा बांग लगाते थे
मुझसे भी ज़्यादा समझदार, दादू की बकरी का बच्चा था,
पर बकरी, मुर्गी से ज़्यादा, दादू का हुक्का अच्छा था,
वो जब भी हुक्का पीते थे, मैं उसमे पानी भरता था,
और इसी सुकृत्य के कारण, दादू का बहुत चहेता था
हर सांझ ढ्ले उस आँगन मे, एक दिया रोज जल जाता था,
जब चूल्हा जलता था घर मैं, और मैं भूखा सो जाता था,
तब माँ आके जगाती थी, और प्यार से चपत लगाती थी,
फ़िर अपने प्यारे हांथो से, वो रोटी साग खिलाती थी I
जब मैं छोटा बच्चा था, तब सब कितना अच्छा था,
जब मैं छोटा बच्चा था, तब मैं शायद ज़्यादा अच्छा था I
Thursday, February 26, 2009
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